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आखिर कैसे अमेरिका पहुंच गया भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग

आप सभी का हमारे ब्लॉग पोस्ट पर स्वागत है। आज हम आपको एक विशेष विषय पर जानकारी प्रदान करेंगे। वो विषय है, “आखिर कैसे अमेरिका पहुंच गया भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग”। हमने यह ब्लॉग पोस्ट बहुत रिसर्च करने के बाद तैयार की है, इसलिए इसे पूरा पढ़ें।

जैसे कि आप सभी को पता हीं है कि हिंदू धर्म में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है। पर हैरानी की बात यह है कि अब इनमें से एक ज्योतिर्लिंग अब अमेरिका में भी स्थापित है। आज हम इसी बारे में जानेंगे कि यह ज्योतिर्लिंग आखिरकार में कैसे अमेरिका पहुंच गया और इसके पीछे की कहानी क्या है।

आखिर कैसे अमेरिका पहुंच गया भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग

आखिर कैसे अमेरिका पहुंच गया भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग

1. श्री महाकालेश्वर मंदिर, सांता क्लारा, कैलिफ़ोर्निया:

अब हम जानते है कि भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग कहा स्थित है? यह ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर मंदिर अमेरिका में स्थापित किया गया है। यह अमेरिका का पहला ज्योतिर्लिंग मंदिर है। इस मंदिर को भगवान शिव के रूद्र अवतार का प्रतीक माना जाता है। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग को दो टन ग्रेनाइट से बनाया गया है, जिसमें 1008 छोटे-छोटे शिवलिंग उकेरे गए हैं, जिसे सहस्त्रलिंगम कहा जाता है। लोगों की मान्यता है कि इस से शिवलिंग की शक्ति हजार गुना बढ़ जाती है। 

2. स्थापना की प्रेरणा:

इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के बारे में जानने के बाद आप सोच रहे होंगे, कि आख़िर इस की स्थापना के पीछे कौन है। वो है स्वामी सथाशिवम। स्वामी सथाशिवम की इस मंदिर की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका है। स्वामी सथाशिवम चेन्नई के प्रसिद्ध संत और पुजारी साम्बामूर्ति शिवाचारियर के पुत्र हैं। उन्होंने 1989 में 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों को अमेरिका ले जाने की योजना बनाई थी। जिस से भारत अमेरिका में भाइचारे की भावना पैदा हो सकें।

3. स्थापना की प्रक्रिया:

स्वामी सथाशिवम जी का इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना में अहम योगदान है। उन्होंने 2010 में इस कार्य को पूरा करने के लिए दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए 1008 चंडी यज्ञ किया। फिर उन्होंने उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के ज्योतिर्लिंग से प्रेरणा लेकर, एक शिवलिंग का निर्माण कार्य शुरू किया। इस शिवलिंग का निर्माण कार्य पूरा होने पर इस ज्योतिर्लिंग को अमेरिका लाया गया।

4. मंदिर की विशेषताएं:

अमेरिका में बनें इस मंदिर की कई विशेषताएं हैं। इस मंदिर में स्थापित ज्योतिर्लिंग दो टन ग्रेनाइट से बना हुआ है। जो कि लोगों में विशेष आकर्षण का कारण बना हुआ है। इस मंदिर में नियमित रूप से विभिन्न रस्म-रिवाज और उत्सव आयोजित किए जाते हैं, जो भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं। 

5. भारतीय समुदाय के लिए महत्व:

इस मंदिर का भारतीय समुदाय के लिए विशेष महत्व है। इस मंदिर ने अमेरिका में भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रसार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस मंदिर में भारतीय लोगों के साथ-साथ अमेरिकी लोग भी, इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने के लिए आते हैं, जिससे यह मंदिर दो देशों के बीच में सांस्कृतिक संगम का प्रतीक बन चुका है।

6. भविष्य की योजनाएं:

स्वामी सथाशिवम ने भविष्य के लिए भी बहुत सी योजनाएं बना रखी है। उनकी फाउंडेशन ने एक ओर योजना बनाई है कि अमेरिका के टेक्सास और बॉस्टन में नए ज्योतिर्लिंग मंदिरों को स्थापित किया जाए। बॉस्टन में जिस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की जाएंगे उसका नाम श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग रखा जाएगा। 

निष्कर्ष:

तो अब आप सभी को पता चल गया हो कि “भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग अमेरिका कैसे पहुंचा”। आज भगवान शिव के प्रति आस्था और समर्पण के चलते ही अमेरिका में ज्योतिर्लिंग की स्थापना का कार्य पूरा हो सका है। इस मंदिर की स्थापना से भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रसार में मदद मिली है। भविष्य में ओर ज्योतिर्लिंगों की स्थापना से भारतीय संस्कृति के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाएगी।

Resources:

  1. Shri Mahakal Mandir
  2. Indian Eagle
  3. ScoopWhoop Hindi

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